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बुधवार, 23 नवंबर 2016

शब्द धारा (17) नोट का रंग

शब्द धारा (17) नोट का रंग 
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अंधेरे में दबा -छुपा नोट ,बेरंग बैठा था ,
तभी सूरज की किरन ने ,हिलाकर उठाया ,
वह इन्द्र -धनुष सा, बिखेरता अनोखी छटा,
लकदक स्याह लिबास में ऐंठा- इठलाया।

हाथ से फिसला, वो, जा गिरा उस चाय में ,
जो कड़क थी-हाथ के हुनर का था कमाल,
स्याह -सफ़ेद का खेल जब  अफ़साना  बना ,
तब  चाय की प्याली में मच गया धमाल।

नोट जब बाहर आया ,इक नए लिबास में ,
उसे लपकने वास्ते, हाय -तौबा मच गई,
तमाशा बन गए,खुद,तमाशा देखने वाले,
 पुराना चल बसा,उसकी निशानी बच गई।

पब्लिक परेशां है,बेचैन है,ग़मग़ीन है,बेज़ार,
नए -नवेले हमसफ़र के वास्ते है बेकरार ,
पांव  थककर चूर -चूर ,आँख भी पथरा गई ,
दीदार उस बेबफ़ा का,कब तलक ये इंतिज़ार ?

इक अलग सदमे में, दिल थामे हुए हैं चन्द लोग,
वो पुरानी गड्डियां ,वो मुकम्मल ,दिल पे बोझ ,
स्याह वो क्या हुआ -मुई, दुनिया अँधेरी हो गई ,
आ गया वो लम्हा ,जो आता क़यामत के रोज़।

मुल्क के गद्दारों की बोलती है आज बन्द ,
 दहशत -पसंदो पर हथौड़े सा पड़ा है एक नोट,
काला -बाज़ारों के ठीये पर,इक दिये की रौशनी ,
सौ सुनारी ठुक -ठुक पे, भारी- इक लुहारी चोट।

नोट छोटा हो गया है ,इसकी भी है इक वजह-
क्या छोटा होते -होते ये पूरा गायब हो जाएगा ?
अभी सब परेशां हैं, 'इन -लाइन' इसके वास्ते ,
अगला ज़माना जरूर- 'ऑन -लाइन' आएगा।

इस गुलाबी नोट की बड़ी  अजीब फितरत है ,
इसे चलते -फिरते रहना बहुतज्यादा  पसंद है ,
साँस घुटती है इसकी गड्डी में ,तिजोरी में ,
छटपटाता है, गर लाकर में ,अँधेरे में, बंद है।

वहाँ ये मारे गुस्से के,गुलाबी से लाल हो जाता है ,
लाल होना इसके गुस्से की अहम  पहचान है ,
क्या कहें ,समझदार को इशारा ही काफी है ,
लाल -सुर्ख रंग ,यक़ीनन खतरे का निशान है।
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                                          (C)   keshavdubey
                                                      22-11-2016                                        







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