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बुधवार, 10 अगस्त 2016

शब्द-धारा (15) दी ग्रेट देसी सर्कस

दी ग्रेट देसी सर्कस
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"बैठ जा बताऊँ "गांव में ,
एक जबर सरकस आया है ,
अपने भानुमती -पिटारे में ,
वो गजब तमाशे लाया है।

सबसे पहले एक जादूगर आता है ,
सारे जिन्स गायब करता फरेब से ,
दाल ,प्याज, डालता अपने हैट में ,
नोटों के बंडल निकालता जेब से।

तार पर डगमग  थिरकती काया,
कम से कम कपडों में बैलेंस सम्हाले ,
ज्यादा से ज्यादा दिखती -लड़की है ,
सांस थामे देखते सब ,देखने वाले।

एक हाथ में वादों की रंगीन  छतरी,
दूसरे में सिर्फ बदनसीबी है ,
उम्मीद बरक़रार -हमेशा की तरह ,
 लड़की, जो रोप -ट्रिक करती- 'गरीबी' है।

ऊपर छत से लटकते लंबे झूले ,
हुनरमंद,बेख़ौफ़  गोता लगाते हैं ,
नियम ,कानून -कायदों को ,
सबको, मजे में ठेंगा दिखाते हैं।

टांग किसकी थामी जम्प मार के ,
कौन ख़रीदा हुआ ,कौन मेहरबान है ,
चूक गये तो फिकर की   बात नहीं ,
नीचे जाली है -कानून की दुकान है।

नॉसिखिए घोड़ों का बचकाना खेल ,
हंसिए मत,अभी ये बेचारे  नये हैं ,
ढाई- घर कूदते शातिर,  शतरंजी घोड़े-
बिकने केलिए, हॉर्स -ट्रेडिंग में गये हैं।


आए मरियल से हाथी रिंग में ,
सूँड़ से पूंछ तक एकदम बेजान ,
इनके दिखाने के दाँत, टूटे -फूटे थे ,
बेचारे छापा पड़ने से थे परेशान।

ये ख़ौफ़नाक खेल, पालतू  शेरों का ,
पब्लिक पर दहाड़ते,गुस्सा दिखाते हैं,
मिमियाते,दुम हिलाते उनके आगे ,
जो पर्दे के पीछे, टुकड़ा खिलाते हैं।

अब आता है आख़िरी सवाल, 
-जोकर का क्या इन्तजाम है?
ये सर्कस का अंगना ही जोक है,
इधर जोकर का क्या काम है?

इस नक्कारखाने में जोर से ,
या तो अपनी तूती बजाइए ,
या सिर झुकाकर बड़े  प्रेम से ,
हर गेम पे ताली बजाइये।

सर्कस का जमाना अब बीत चुका ,
ये तमाशा ,ना जाने कब मिटेगा ,
मुख़ौटे लगाये ,फरेबी हाथों से ,
अवाम, आखिर कब तक पिटेगा ?
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                         (C) keshavdubey
                                     8-8-2016
                        (http://shabda-dhara.blogspot.in)

    












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