दी ग्रेट देसी सर्कस
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"बैठ जा बताऊँ "गांव में ,
एक जबर सरकस आया है ,
अपने भानुमती -पिटारे में ,
वो गजब तमाशे लाया है।
सबसे पहले एक जादूगर आता है ,
सारे जिन्स गायब करता फरेब से ,
दाल ,प्याज, डालता अपने हैट में ,
नोटों के बंडल निकालता जेब से।
तार पर डगमग थिरकती काया,
कम से कम कपडों में बैलेंस सम्हाले ,
ज्यादा से ज्यादा दिखती -लड़की है ,
सांस थामे देखते सब ,देखने वाले।
एक हाथ में वादों की रंगीन छतरी,
दूसरे में सिर्फ बदनसीबी है ,
उम्मीद बरक़रार -हमेशा की तरह ,
लड़की, जो रोप -ट्रिक करती- 'गरीबी' है।
ऊपर छत से लटकते लंबे झूले ,
हुनरमंद,बेख़ौफ़ गोता लगाते हैं ,
नियम ,कानून -कायदों को ,
सबको, मजे में ठेंगा दिखाते हैं।
टांग किसकी थामी जम्प मार के ,
कौन ख़रीदा हुआ ,कौन मेहरबान है ,
चूक गये तो फिकर की बात नहीं ,
नीचे जाली है -कानून की दुकान है।
नॉसिखिए घोड़ों का बचकाना खेल ,
हंसिए मत,अभी ये बेचारे नये हैं ,
ढाई- घर कूदते शातिर, शतरंजी घोड़े-
बिकने केलिए, हॉर्स -ट्रेडिंग में गये हैं।
आए मरियल से हाथी रिंग में ,
सूँड़ से पूंछ तक एकदम बेजान ,
इनके दिखाने के दाँत, टूटे -फूटे थे ,
बेचारे छापा पड़ने से थे परेशान।
ये ख़ौफ़नाक खेल, पालतू शेरों का ,
पब्लिक पर दहाड़ते,गुस्सा दिखाते हैं,
मिमियाते,दुम हिलाते उनके आगे ,
जो पर्दे के पीछे, टुकड़ा खिलाते हैं।
अब आता है आख़िरी सवाल,
-जोकर का क्या इन्तजाम है?
ये सर्कस का अंगना ही जोक है,
इधर जोकर का क्या काम है?
इस नक्कारखाने में जोर से ,
या तो अपनी तूती बजाइए ,
या सिर झुकाकर बड़े प्रेम से ,
हर गेम पे ताली बजाइये।
सर्कस का जमाना अब बीत चुका ,
ये तमाशा ,ना जाने कब मिटेगा ,
मुख़ौटे लगाये ,फरेबी हाथों से ,
अवाम, आखिर कब तक पिटेगा ?
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(C) keshavdubey
8-8-2016
(http://shabda-dhara.blogspot.in)
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"बैठ जा बताऊँ "गांव में ,
एक जबर सरकस आया है ,
अपने भानुमती -पिटारे में ,
वो गजब तमाशे लाया है।
सबसे पहले एक जादूगर आता है ,
सारे जिन्स गायब करता फरेब से ,
दाल ,प्याज, डालता अपने हैट में ,
नोटों के बंडल निकालता जेब से।
तार पर डगमग थिरकती काया,
कम से कम कपडों में बैलेंस सम्हाले ,
ज्यादा से ज्यादा दिखती -लड़की है ,
सांस थामे देखते सब ,देखने वाले।
एक हाथ में वादों की रंगीन छतरी,
दूसरे में सिर्फ बदनसीबी है ,
उम्मीद बरक़रार -हमेशा की तरह ,
लड़की, जो रोप -ट्रिक करती- 'गरीबी' है।
ऊपर छत से लटकते लंबे झूले ,
हुनरमंद,बेख़ौफ़ गोता लगाते हैं ,
नियम ,कानून -कायदों को ,
सबको, मजे में ठेंगा दिखाते हैं।
टांग किसकी थामी जम्प मार के ,
कौन ख़रीदा हुआ ,कौन मेहरबान है ,
चूक गये तो फिकर की बात नहीं ,
नीचे जाली है -कानून की दुकान है।
नॉसिखिए घोड़ों का बचकाना खेल ,
हंसिए मत,अभी ये बेचारे नये हैं ,
ढाई- घर कूदते शातिर, शतरंजी घोड़े-
बिकने केलिए, हॉर्स -ट्रेडिंग में गये हैं।
आए मरियल से हाथी रिंग में ,
सूँड़ से पूंछ तक एकदम बेजान ,
इनके दिखाने के दाँत, टूटे -फूटे थे ,
बेचारे छापा पड़ने से थे परेशान।
ये ख़ौफ़नाक खेल, पालतू शेरों का ,
पब्लिक पर दहाड़ते,गुस्सा दिखाते हैं,
मिमियाते,दुम हिलाते उनके आगे ,
जो पर्दे के पीछे, टुकड़ा खिलाते हैं।
अब आता है आख़िरी सवाल,
-जोकर का क्या इन्तजाम है?
ये सर्कस का अंगना ही जोक है,
इधर जोकर का क्या काम है?
इस नक्कारखाने में जोर से ,
या तो अपनी तूती बजाइए ,
या सिर झुकाकर बड़े प्रेम से ,
हर गेम पे ताली बजाइये।
सर्कस का जमाना अब बीत चुका ,
ये तमाशा ,ना जाने कब मिटेगा ,
मुख़ौटे लगाये ,फरेबी हाथों से ,
अवाम, आखिर कब तक पिटेगा ?
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(C) keshavdubey
8-8-2016
(http://shabda-dhara.blogspot.in)
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