(Environment Day :June 5)
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शब्द -धारा (१३ ) हमारे ज़माने में
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गुजरे ज़माने के दादू गुजर गए ,
सन्तानवे बरस की उमर पाई थी ,
सरकार पिंशन देते -देते थक गई ,
सौ पूरा करते: क्या करें ,मौत आई थी।
दादू प्राइमरी में ' एक्टिंग -हेडमास्टर' थे ,
"लिपिकीय -त्रुटिवश "एक्टिंग ही करते रहे ,
अपने ज़माने की बातों में खोए रहे ,
यादों के सुनहरे हवामहल गढ़ते रहे।
दादू उमर के साथ-साथ सनक गए थे ,
उनके जैसे बूढ़े कुछ ऐसे ही रहते हैं ,
अकलवर ,"यस -सर "कहते, मुंडी हिलातेहैं ,
सनकी ,झक्की ,बेमौसम ,पते की बात कहते हैं।
लोग चौंके ,जब दादू अपनी वसीयत कर गए ,
"मेरी किताबें वजन में पचास किलो तक जायेंगी"
फक्कड़ गुरुजी नेआखिरी वसीयत में लिखा-
-"पॉलीथिन बैन है,रद्दी में अच्छी कीमत लायेंगी। ."
आगे लिखा-"बचा क्या है इस गरीब के पास -
जमीन सरकारी है ,अपनी तो हवा है ,पानी है ,
हवा में थोड़ा जहर घुला ,पानी बोतल -बंद हो गया ,
ये इंसानी तररकी की मुक़्क़मल निशानी है।
हमारा ज़माना यहाँ तक पहुँच चुका ,
सिर फूटने लगे हैं अब पानी के लिए ,
गहरी सांस मत लो ,ज्यादा प्रदूषण जाएगा ,
अरसा बीत गया ,नदी का साफ पानी पिये।
गठरी बांध रखी आल -औलाद के लिये ,
लोग सात पुश्तों का इंतिजाम करते हैं ,
पानी की प्यास ,हवा का ज़हर भूल गये ?
भुगतना बेटा ,हम तो सफर करते हैं।
सोचो ,सौ -पचास साल में क्या होगा ?
बची -खुची हरियाली साफ हो जाएगी ,
तवे सी तपेगी, माँ धरती की छाती ,
पानी आंखों में,हवा बोतल -बंद आएगी।
पीढ़ी -दर पीढ़ी ज़माना बदलता रहता है ,
सब बातों के बहादुर हैं -जाने -अनजाने में ,
काश ,आने वाली नस्लों को तोहफ़ा मिले-
धरती ,रहने लायक बनी ,हमारे ज़माने में।"
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(C) -Keshavdubey-
5 June 2016
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