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सोमवार, 6 जून 2016

शब्द -धारा (१३ ) हमारे ज़माने में

                              (Environment Day :June 5)
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                          शब्द -धारा  (१३ ) हमारे  ज़माने में
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गुजरे ज़माने के दादू गुजर गए ,
सन्तानवे बरस की उमर पाई थी ,
सरकार पिंशन देते -देते थक गई ,
सौ पूरा करते: क्या करें ,मौत आई थी।

दादू प्राइमरी में ' एक्टिंग -हेडमास्टर' थे ,
"लिपिकीय -त्रुटिवश "एक्टिंग ही करते रहे ,
अपने ज़माने की बातों में खोए रहे ,
यादों के सुनहरे हवामहल गढ़ते रहे।

दादू उमर के साथ-साथ  सनक गए थे ,
उनके जैसे बूढ़े कुछ ऐसे ही रहते हैं ,
अकलवर ,"यस -सर "कहते, मुंडी हिलातेहैं ,
सनकी ,झक्की ,बेमौसम ,पते की बात कहते हैं।

लोग चौंके ,जब दादू अपनी वसीयत कर गए ,
"मेरी किताबें वजन में पचास किलो तक जायेंगी"
फक्कड़ गुरुजी नेआखिरी वसीयत में लिखा-
-"पॉलीथिन बैन है,रद्दी में अच्छी कीमत लायेंगी। ."

आगे लिखा-"बचा क्या है इस गरीब के पास -
जमीन सरकारी है ,अपनी तो हवा है ,पानी है ,
हवा में थोड़ा  जहर घुला ,पानी बोतल -बंद हो  गया ,
ये इंसानी तररकी की मुक़्क़मल निशानी है।

हमारा ज़माना यहाँ तक पहुँच चुका ,
सिर फूटने लगे हैं अब पानी के लिए ,
गहरी सांस मत लो ,ज्यादा प्रदूषण जाएगा ,
अरसा  बीत गया ,नदी का साफ पानी पिये।

गठरी बांध रखी आल -औलाद के लिये ,
लोग सात पुश्तों का इंतिजाम करते हैं ,
पानी की प्यास ,हवा का ज़हर भूल गये ?
भुगतना बेटा ,हम तो सफर करते हैं।

सोचो ,सौ -पचास साल में क्या होगा ?
बची -खुची हरियाली साफ हो जाएगी ,
तवे सी तपेगी, माँ धरती की छाती ,
पानी आंखों में,हवा बोतल -बंद आएगी।

पीढ़ी -दर पीढ़ी ज़माना बदलता रहता है ,
सब बातों के बहादुर   हैं -जाने -अनजाने में ,
काश ,आने वाली नस्लों को तोहफ़ा मिले-
धरती ,रहने लायक बनी ,हमारे ज़माने में।"
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                                                                              (C)    -Keshavdubey-
                                                                                         5 June 2016
                                                                                   







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