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गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

शब्द -धारा (१२) गरीबों का सुपरबाजार

शब्द -धारा (१२)  गरीबों का  सुपरबाजार

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इधर  वसन्ती -बाई चौक में ,
गरीबों का सुपर-बाजार है ,
गरीबों की मदद के वास्ते,
शिद्दत से बैचैन है ,बेज़ार है।   

ये ख़ासियत है बाज़ार की ,
फिक्स है हर चीज़ का दाम ,
फिक्स रेट खरीदो,फिक्स रेट बेचो ,
माल चाहे बेशकीमत ,या हो बेकाम। 

सस्ता बाज़ार है,हर माल फिक्स रेट,
आबरू है तयशुदा,ईमान फिक्स रेट,
जुलूस एक भाव,गोली का एक रेट,
जान की कीमत? श्रीमान फिक्स रेट।

अंदर पूछते हैं -फटेहाल हो ,
भुखमरी के करीब हो ?
खानदानी मुफलिसी है -
या दो-नंबर के  गरीब हो ?

गरीबी का ठप्पा लग चुका ?
सबूत लाए हो साथ में ?
आखिरी खाना कब खाया था ?
पानी पिया था -पिछली बरसात में ?

हर मंज़िल का जगमग मंज़र,
दिल को लुभाता है ,
पैर ऊपरी सीढ़ी पर रखो तो ,
एस्क्लेटर नीचे जाता है।

गरीबी जाती चेंजिंग-रूम में,
नई साड़ी को फूल सी सम्हाले,
फटी धोती की लज़्ज़ा ,ग्लानि-बोध,
जैसे नए लिबास में मिटा डाले। 

आकर,आयाम,आरोह -अवरोह,
जांचते पूरा वज़ूद, सीसीटीवी  फुटेज में ,
गरीबी को कैफ़ियत, गहराई से नापेंगे ,
वही  दर्ज़ होगा सुपरबाजार -पेज में। 

इसके हर पहलू का नाप -जोख ,
सुपरबाजार -वाले आपस में बाटेंगे,
गरीबी के आंकड़े ,बुलंद ग्राफ,
शहद लगाकर प्यार से चाटेंगे।                                        

जन्नत -नशी वादों की बेवा- गरीबी,
यहाँ से 'दुरे -दुरे 'भगाते हैं ,
हाँ,पांच साल में एक बार जरूर ,
इलेक्शन -पर्व में, गले लगाते हैं। 
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                                           (C) keshavdubey
                                                20-4-2016
 






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