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मंगलवार, 22 मार्च 2016

शब्द -धारा (!!) होली पे पॉलिटिक्स


                  शब्द -धारा (11) होली पे पॉलिटिक्स              

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कुछ इस कदर घुसी है दिमांगों में पॉलिटिक्स ,
हर चीज़ नज़र आती है ,दिन-रात पॉलिटिक्स
है  कुदरते -मेहर से दिमांगों  में रौशनी ,
 गोबर भरा हुआ,तो मालिक की पॉलिटिक्स।

लीडर की पूंछ पकड़े ,वो हुनरमंद है ,
इस खेल में ग़ैरत का, दरवाजा  बंद है ,
चिकने घड़े बिके ,गधे पर लदे हुए ,
और खुरदुरे घड़ों का बाज़ार मंद है।

लीडर में समझ है ,लीडर में सूझ है ,
लीडर की शान है ,लीडर की मूंछ है ,
क्या ख़ासियतहैआखिर, पब्लिक के जिस्म में?
-लीडर के पैने  सींग हैँ ,लीडर की पूंछ है।

मुई पॉलिटिक्स में देखिये, क्या गुल खिल गया ,
अपने हुए पराये ,फिर दोस्त मिल गया ,
अमरिकन फैशन का इक कोट सिल गया ,
कमीज़ उतर गई  ,जब दर्जी का बिल गया।

जंगी अदा से घूमते बस एक पैंट  में ,
चीनी मदद से यार का लँगोट सिल गया ,
लँगोट है सलामत -सारा जहान है ,
ये भी उतर गया तो फिर -----?

अपने गरेबां झांकिए,ये पॉलिटिक्स के रंग ,
जैसे किसी ने घोल दी ,हर बाबड़ी में भंग ,
जुगनू सी रौशनी में चमकते हैँ रहनुमा ,
वादों की बहादुरी है ,बातों की  छिड़ी जंग।

फैशन बना है बोलना ,अब मुल्क के ख़िलाफ़ ,
वो  बे -गैरत वज़ूद का खुद दे रहे हिसाब ,
माटी कंहाँ से आई -उनका  बदन बना ,
'-माता ' कंहाँ हैँ उनकी,  है कौन माई -बाप ?

इन्सान को तो वतन की मिट्टी  बनाती है ,
वो ही वज़ूद के ज़र्रे-ज़र्रे में समाती है,
सिरफिरे  बनते हैं ,हवा के एक  झोंके से ,
यक़ीनन, वो हवा कंही बाहर से आती  है।  


इस मर्ज़ का कुछ तो, साहिब  इलाज़ कीजिए ,
मुट्ठी में बंधी रेत ,फिसलने ना दीजिए ,
ये पॉलिटिक्स है दोमुँही तलवार की तरह ,
कुछ कीजिए ,कुछ कीजिए --या जाने दीजिए!

होली का रंग घोलकर माला पिरोइये,
सियासती फिज़ां में फिर सौ बार धोइये ,
लीडर की जै -जै बोलिये ,फिर पांच साल तक ,
आराम बड़ी चीज़ है ,मुंह ढँक के सोइये।
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                                                                                             =केशव दुबे =
                                                                                                     ( होली -2016)
                                                                                                  (keshavdubey.blogspot.com)

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