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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

शब्द -धारा (10 ) मेरा प्यारा दुश्मन

 शब्द -धारा (10 ) मेरा प्यारा दुश्मन
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मैं तुम्हें जानता हूँ ,पहचानता हूँ ,
लंबी लाइन में तुम शुमार हो ,
खुश -आमदीद, तुम्हारा इक़बाल है ,
आखिर मुझसे मुलाकात को बेज़ार हो।

नफ़रत तुम्हारे दिल में है ,
दफ़न है कंही गहराई में ,
फूलों की चादर बिछा रक्खी है ,
कौन झांकेगा गहरी खाई में।

हाथ को हथियार से क्या वास्ता ,
नादां हैँ ख़ून बहाने वाले ,
मुस्कुराहट बिक रही बाज़ार में,
खरीद लेते हैं ,अज़ीज़ कहाने वाले।

सब दोस्त हैं ,सब खैरख्वाह हैं ,
खुशनुमा अहसास से प्यार देते हैं,
पाॉव को थामते सहारा देकर ,
वक्त -बेवक़्त लंगड़ी मार देते हैं।

दोस्ती का दम भरने वाले ,
अपने चेहरे नकाब में ढोते हैं ,
दुश्मन को मुल्लमे की ज़रुरत नंही ,
वो अपने ही अक्स में होते हैँ। 

ज़माने की रफ़तार के पेशे-नज़र ,
दोस्त भी शरीफ़ हैँ -दुश्मन भी ,
दिल चाहे जिसे, गले  लगाइये,
वक़्त का तकाज़ा है -मौसम भी।

ज़िन्दिगी, जीना नंही,महज़ एक्टिंग है ,
हर आदमी स्टेज पे नज़र आता है ,
गर डील  हो मुफ़ीद, मुकम्मिल हो,
दोस्त -दुश्मन का किरदार बदल जाता है।
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