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शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

शब्द -धारा (9 ) मनी -प्लान्ट

                                        शब्द -धारा (9 ) मनी -प्लान्ट
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हमारी  गली  के नेता -श्री ,
एक साधू को लाये पकड़ ,
उसकी सेवा से प्राप्त की ,
अनोखी मनी -प्लान्ट की जड़।

जड़ रोपी अपने आँगन में ,
बड़े प्रयास से ,बड़े जतन से ,
सबकी नज़रों से बचाकर ,
उसे सींचा बड़े मन से।

पौधा बढ़ा,लम्बी हुई बेल ,
दीवार चढ़ी ,मुंडेर चढ़ी ,
इठलाती ,लहराती ,बलखाती ,
हरी -भरी बेल बढ़ीं।

मनी -प्लांट खूब बढ़ा ,
फल लगे -सचमुच की मनी ,
रुपया ,नोट ,सोना ,चांदी ,
वे बने दिनो -दिन धनी।

मनी -प्लान्ट की जड़ से
ऐसी कुछ क़िस्मत बनी ,
दोनों हाथ बटोरने लगे ,
वाइट ,येलो ,ब्लैक -मनी।

पर  हाय !ये क्या हुआ ?
बेल चढ़ी ,राह भटकी ,
पड़ोसी के आँगन पार ,
दीवार से बेल लटकी।

ये कैसा अनर्थ हुआ ,
कैसा ये अनाचार ,
प्लान्ट -प्लान्ट इधर बचा ,
मनी -मनी उस पार।

वे सींचें ,अगला माल काटे -
दिल पर सांप लोटने लगा ,
कलेजे में बरछी लगी ,
भले ही ,पड़ोसी था सगा।

पैसा तो आखिर  पैसा था ,
परम -आत्मा ,माया -जाल ,
बेशरम बेल ने फांदी मुंडेर ,
किया उन्हें हाल -बेहाल।

शराफत ताक पर रखी ,
नंही की कोई देर ,
चाकू से काटी बेल ,
ना रहे बेल ,ना चढ़े मुंडेर।

पौधा काटा तेज़ धार से ,
जड़ काटी एक वार से ,
चांदी के वर्क में लपेटा ,
पड़ोसी को भेंट किया प्यार से।

अब पड़ोसी सींचे ,बेल उगाये ,
मेहनत कर -करके मरे ,
जब बेल दीवाल फांदे तो ,
मोटे माल से उनका घर भरे।
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