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रविवार, 22 नवंबर 2015

***शब्द -धारा***(8)अंधी -दौड़

 **शब्द -धारा***(8)अंधी -दौड़

धरती  घूम रही ,
अब  ज्यादा  तेज ,
सब कुछ  'तत्काल ' है ,
-सुपरसोनिक -ऐज।


भागो ,गर गिर पड़ो ,
किसीकी खता नंही ,
किसकी तलाश है ,
यही तो पता नंही।


रुके ,दम ले,सांस ले ,
फुरसत कहाँ  है ,
शरीक इस दौड़ में ,
सारा जहाँ है। 

वक़्त की रफ़्तार में ,
तिनके सा बहे ,
मरने की फुरसत नंही ,
जीने की कौन कहे ?

सपनों का मायाजाल ,
सांसो से सिये ,
यहाँ बस दौड़ हैं ,
जिंदिगी कौन जिये।

सुख का स्वर्ण -मृग ,
खुशियों काअम्बार ,
भागों,शायद मिले ,
सात समन्दर पार।

नाम है,शोहरत है ,
दौलत,बरक्कत,है ,
फिर फुरसत से जी लेंगे-
अभी क्या दिक्कत है ?

भीड़ के सैलाब में ,
बहो-बहते रहो ,
'मैं' क़ो भुलाकर ,
'हम -हम 'कहते रहो।

पीछे मत देखो ,
मर चुका अतीत ,
रुका,वो मिट गया ,
जग की ये रीत।

अंधी ये दौड़ है,
किस्मत संवार दे ,
वो ही सिकन्दर है ,
लंगड़ी जो मार दे।

आकाश को छूता ,
मष्तिष्क का आयाम ,
धड़कन बरोबर है तो ,
दिल का क्या काम ?
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