शब्द -धारा (६ ) हंसी
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ठहाके मार के हंस सकना,
आदमी को मिला वरदान है,
कोई दूसरा प्राणी नहीं हंस सकता,
यही प्रकृति का विधान है.
ख़ुशी की गठरी खोल के हँसना,
आनंद,उत्साह,से खिलखिलाना
सबके फटे में टांग फंसाना,
हर हंसी में अपनी हंसी मिलाना.
हम ख़ुशी-ख़ुशी रखते हैं,
पराई मुसीबतों पर अपनी नज़र,
भले ओंठो पर हो मातमी मरहम,
दिल बल्लिओं कूदता है मगर.
मौत का तांडव हो,आतंक का मर्सिया,
गमगीन सूरते सामने आती हैं,
भीड़ के करुण क्रन्दन में छुपी,
कोई क्रूर आकृति मुस्कुराती है.
जिंदगी खुशिओं से लबालब भरी,
हंसी जैसे छलकती रहती है,
ऐसे भी चेहरे हैं,जिनकी हंसी,
दो-चार को मार देती है.
"हंसी अच्छे स्वस्थ्य की चाबी है"
लोग ये नियम सिखाते हैं,
आजकल लॉफ्टर-क्लब हैं जहाँ,
फीस लेकर हँसाते है,
एक आईने के सामने देखिए,
आहा! आप कितने सुन्दर लगते हैं ,
पूछिए अपने आप से जरा-
क्या आप खुद पर हंस सकते हैं?
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