शब्द -धारा (4) प्रकति; एक शिशु
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अबोध बालक खेलता है,
खिलोने से,
प्रकति अपनी रचना से खेलती,
खुद बनाती,
खुद मिटाती, अपने खजाने को.
मुनिया,गुडिया को दुलारती,
फिर रूठकर फ़ेंक देती है,
प्रकति हमे गोद में बिठालती,
उतारती-
फिर उठा लेती है.,
गुडिया एक बच्चे का खेल है,
खिलवाड़ है.
आदमी प्रकति का खिलौना है,
अभी स्वर्णिम रचना,
अभी कबाड़ है.
बच्चा क्यों बिफरता है,
कोई नंही जानता
कायनात के बदलते रंग,
अबूझे ही रह जाते,
कोई नंही पहचानता,
लो गुडिया खुश हुई,
ओंठो पर हंसी आई,
लो प्रकति महकी,
सात रंगों में बिखरी,
छलकी,
मुस्कुराई.
प्रकति मालिक है,
अपनी मर्जी की
ना क्रूर-ना दयावान,
जितनी सर्वज्ञ है-
उतनी ही अबोध,
जैसे शिशु की मुस्कान.
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अबोध बालक खेलता है,
खिलोने से,
प्रकति अपनी रचना से खेलती,
खुद बनाती,
खुद मिटाती, अपने खजाने को.
मुनिया,गुडिया को दुलारती,
फिर रूठकर फ़ेंक देती है,
प्रकति हमे गोद में बिठालती,
उतारती-
फिर उठा लेती है.,
गुडिया एक बच्चे का खेल है,
खिलवाड़ है.
आदमी प्रकति का खिलौना है,
अभी स्वर्णिम रचना,
अभी कबाड़ है.
बच्चा क्यों बिफरता है,
कोई नंही जानता
कायनात के बदलते रंग,
अबूझे ही रह जाते,
कोई नंही पहचानता,
लो गुडिया खुश हुई,
ओंठो पर हंसी आई,
लो प्रकति महकी,
सात रंगों में बिखरी,
छलकी,
मुस्कुराई.
प्रकति मालिक है,
अपनी मर्जी की
ना क्रूर-ना दयावान,
जितनी सर्वज्ञ है-
उतनी ही अबोध,
जैसे शिशु की मुस्कान.
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