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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

शब्द -धारा (2 ) मेरे नर्क में

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                                                       **********शब्द -धारा (2 ) मेरे नर्क में****
मैंने ईश्वर को सच्चे ह्रदय से बुलाया,
घने अन्धकार में,
आर्तनाद किया,
  आवाज़ दी,

सच्चा समर्पण था,
सिर्फ एक प्रकाश-किरण के लिए,
आओ आलोकित करो,
आँखे मत फेरो.
उस परम शक्ति को पुकारा ,

प वित्र स्थानों,पूजा-ग्रहों,में,
जहाँ गया-आवाज़ लगाई.

सब पथो पर,
जो उसकी ओर जाते हैं-
आर्त प्राथना की.

मेरी सुध ली गयी,
फिर एक दिन-
प्रभु बोले-मैंने तेरी पुकार सुनी,
तेरा क्रन्दन सुना,

आ बालक आ-
तेरी प्राथना स्वीकार हुई,
ईश्वर अपने अंश को,
नंही भूलता.
आ मेरे पास आ,
आ जा.

मैंने घबरा- कर प्रतिवाद किय,
नह्णी-प्रभु नंही,
में तुम्हे बुलाता रहू पर-
तुम मुझे मत बुलाना..
मुझे मत बुलाना---
हे सर्व-शक्तिमान! तुम अपने स्वर्ग में खुश रहो,
मुझे धरती के नरक में,
रहने दो.
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                                                                             (C) keshavdubey


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