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गुरुवार, 20 अप्रैल 2017

शब्द धारा (19) सपने

सपने    













दुनिया  में हक़ीक़त के उस पार,
 एक अलहदा  वज़ूद है अपना ,
दिखाई देने की इंतिहा होने पर ,
बंद आँखे  दिखाती है सपना।

सपने  रंग -बिरंगे, दिखते-दिखते   ,
अक्सर  बे -नूर,बेरंग  हो जाते है,
कितने अरमान जगाकर सपने ,
खुद गहरी नींद में सो जाते हैं।

 प्यारा सपना, रुपयों की बरसात,
नोट छप्पर फाड़ के बरसते हैं,
शोर मचता है,तभी छापे की तरह.
जागकर, उसी नींद को तरसते हैं।

सपने मशहूर हैं आशिकी के  ,
आहें भरते,इश्क का पाठ पढ़ते हैं,
बस,नींद में गुंजाइश बची हैआजकल,
हकीकत में तो बे-भाव के पड़ते हैं।

,"चैन से सोना है ,तो जागते रहो -"
आम आदमी को सिखाया जाता है.
उसने खुद  देखना, कब का छोड़ दिया-
सपना तो उसे दिखाया जाता है।

एकाध सपना पूरा भी  होता है ,
अक्सर वो अधूरे रह जाते हैं ,
ख्वाहिशों के मेले में ख़ुशी तलाशते,
आवारा सपने बार -बार आते हैं।

आदमी जागते हुए भी देखता है ,
खुली आँख सपना दिखाती है ,
झूठा सपना दिन में देख लो फिर,
रात में अच्छी नींद आती है।

सपना,जिन्दिगी की परछाईं है,
सबूत है ,फैला हुआ आसमान है,
खुदी की बुलंदी ,पूरी कायनात है,
बेख़ुदी में जागा ,सारा जहान है.

सपनों से प्यार करो -ये अपने हैं,
खुशबू हैँ ,जिन्दिगी के बिखरे  रंग हैं,
लाख झूठे सही ,आपके अहसास हैं,
सांस की तरह ,आपके संग -संग हैं।
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                                (C) keshavdubey
                                          18-4-2017




















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